Friday, November 22, 2019

प्रज्ञा ठाकुर अक्सर अपने विवादित बयानों के लिए भी चर्चा में रही हैं.

लेकिन विनिवेश की ये प्रक्रिया भी अर्थव्यवस्था की तरह धीमी चल रही है. मोदी सरकार का विनिवेश का इस साल का टारगेट सिर्फ़ 16% पूरा हो पाया है. टारगेट के 1.05 लाख करोड़ में से क़रीब 17,365 करोड़ रुपए जुटाए जा चुके हैं.
एयर इंडिया को बेचने के लिए भी निवेशक की तलाश है. इसमें देरी हो रही है क्योंकि पहले सरकार इसमें 24% होल्डिंग रखना चाहती थी लेकिन अब सरकार इ
विनिवेश की धीमी रफ़्तार की वजह इसका विरोध भी है क्योंकि इससे नौकरियां जाने का ख़तरा है.
आरएसएस से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ ने भी सरकारी कंपनियों को प्राइवेट कंपनियों को बेचने का विरोध किया है.
क्योंकि प्राइवेट कंपनी किसी को भी नौकरी से निकाल सकती है. हालांकि अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि नौकरी से निकालने का मतलब ये नहीं है कि कर्मचारी सड़क पर आ जाएंगे. स्टाफ़ को वीआरएस (voluntary retirement scheme) देना पड़ेगा, प्रोविडेंट फण्ड देना पड़ता है और उन्हें ग्रेच्युटी देनी पड़ेगी.
पिछली बार एनडीए सरकार ने 1999 से 2004 के बीच भी राजकोषीय घाटा कम करने के लिए विनिवेश का तरीका अपनाया था. तब इसके लिए एक अलग मंत्रालय बनाया गया था.
ये कवायद कांग्रेस सरकार की भी रही है लेकिन फ़िलहाल वो एनडीए सरकार के क़दम की आलोचना कर रही है.
प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने महात्मा गांधी की हत्या के दोषी नाथूराम गोड
इस समिति में राजनाथ सिंह के अलावा फ़ारूक़ अब्दुल्लाह, ए राजा, सुप्रिया सुले, मीनाक्षी लेखी, राकेश सिंह, शरद पवार, सौगत रॉय और जेपी नड्डा भी हैं.
कांग्रेस सचिव प्रणव झा ने न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस से कहा है कि बीजेपी को इस फ़ैसले पर फिर से विचार करना चाहिए.
उन्होंने ये भी कहा कि जिन लोगों के ख़िलाफ़ कोर्ट में मामला चल रहा है उन्हें समिति में लाना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. सब कुछ संविधान के निर्देशन में नहीं होता कुछ फ़ैसले नैतिक आधार पर भी लेने होते हैं.
से को देशभक्त बताया था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था
बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्य रह चुकी हैं.
उन्होंने इस साल लोकसभा चुनाव में भोपाल से जीत दर्ज की थी. उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को हराया था. वे अपने बयानों को लेकर विवादों में भी रही थीं.
साल 2008 के मालेगाँव ब्लास्ट में वे अभियुक्त भी हैं.
महाराष्ट्र के मालेगाँव में अंजुमन चौक और भीकू चौक के बीच शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट के सामने 29 सितंबर 2008 की रात 9.35 बजे बम धमाका हुआ था जिसमें छह लोग मारे गए और 101 लोग घायल हुए थे.
इस धमाके में एक मोटरसाइकिल इस्तेमाल की गई थी. एनआईए की रिपोर्ट के मुताबिक़ यह मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर थी.
इस मामले में एनआईए कोर्ट ने प्रज्ञा ठाकुर को ज़मानत दे दी थी लेकिन उन्हें दोषमुक्त नहीं माना था और दिसंबर 2017 में दिए अपने आदेश में कहा था कि प्रज्ञा पर यूएपीए (अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रीवेंशन एक्ट) के तहत मुक़दमा चलता रहेगा.
प्रज्ञा ठाकुर पर समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले के अभियुक्त सुनील जोशी की हत्या का आरोप भी लगा था. जोशी की 29 दिसंबर 2007 को हत्या कर दी गई थी.
अजमेर दरगाह ब्लास्ट मामले में भी प्रज्ञा ठाकुर का नाम आया था लेकिन अप्रैल 2017 में एनआईए ने प्रज्ञा ठाकुर, आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार और दो अन्य के ख़िलाफ़ राजस्थान की स्पेशल कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी.
कि इसे बयान के लिए वो उन्हें कभी दिल से माफ़ नहीं कर पाएंगे.
कांग्रेस ने ये भी लिखा, "आख़िरकार मोदी जी ने प्रज्ञा ठाकुर को दिल से माफ़ कर ही दिया! आतंकवादी हमले की अभियुक्त को रक्षा मंत्रालय की समिति में जगह देना उन वीर जवानों का अपमान है, जो आतंकवादियों से देश को महफ़ूज रखते हैं."
से पूरी तरह बेचने को तैयार है.
मध्य प्रदेश के भोपाल से बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को रक्षा मंत्रालय की 21 सदस्यीय संसदीय सलाहकार समिति में शामिल किया गया है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस समिति की अध्यक्षता करेंगे.
प्रज्ञा ठाकुर को समिति का सदस्य बनाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. कांग्रेस ने इसे देश का अपमान बताया है.
प्रज्ञा सिंह ठाकुर 2008 के मालेगाँव ब्लास्ट मामले में अभियुक्त हैं. फिलहाल वो स्वास्थ्य कारणों से ज़मानत पर बाहर हैं.
कांग्रेस ने उनके चयन को लेकर अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, "आतंक की अभियुक्त और गोडसे की कट्टर समर्थक प्रज्ञा ठाकुर को बीजपी ने रक्षा मामलों पर संसदीय समिति के सदस्य के तौर पर नामित किया है. यह क़दम हमारे देश के सुरक्षा बलों, माननीय सांसदों और हर भारतीय का अपमान है."

Tuesday, September 17, 2019

असदउद्दीन ओवैसी ने इंडिया गेट के सारे 'नंबर' ग़लत बताए? फ़ैक्ट चेक

सोशल मीडिया पर ये दावा किया जा रहा है कि 'दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान गंवाने वाले लोगों के नाम लिखे हुए हैं जिनमें से 65 फ़ीसदी नाम हिन्दुस्तान के मुसलमानों के हैं'.
जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर यह दावा किया है, उन्होंने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुसलमीन पार्टी के चीफ़ और हैदराबाद लोकसभा क्षेत्र के सांसद असदउद्दीन ओवैसी के एक हालिया भाषण का हवाला दिया है.
ओवैसी ने मुंबई के चांदीवली इलाक़े में 13 जुलाई 2019 को यह भाषण दिया था जिसके कुछ हिस्से अब सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं.
अपने इस भाषण में ओवैसी ने दावा किया था, "जब मैं इंडिया गेट गया तो मैंने वहाँ उन नामों की फ़ेहरिस्त को देखा जिन्होंने हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए अपनी जान गंवा दी. उस इंडिया गेट पर 95,300 लोगों के नाम लिखे हुए हैं. आपको ये जानकर ख़ुशी होगी कि उनमें से 61,945 सिर्फ़ मुसलमानों के नाम हैं. यानी 65 फ़ीसदी सिर्फ़ मुसलमानों के नाम हैं."
इसके बाद ओवैसी ने सभा में मौजूद लोगों से कहा कि बीजेपी, आरएसएस और शिवसेना का कोई आदमी अगर उनसे कहे कि वो देशभक्त नहीं हैं, तो वो उसे इंडिया गेट देखकर आने को कहें.
13 जुलाई को 'मीम न्यूज़ एक्सप्रेस' नाम के एक यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड हुए उनके इस भाषण को सवा लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है और उनके हवाले से सोशल मीडिया यूज़र्स अब इस दावे को वॉट्सऐप पर सर्कुलेट कर रहे हैं.
दिल्ली सरकार की वेबसाइट के अनुसार नई दिल्ली में स्थित 'इंडिया गेट' साल 1931 में बनकर तैयार हो गया था. यानी भारत की आज़ादी से क़रीब 16 साल पहले.
42 मीटर ऊंचा ये स्मारक अंग्रेज़ों के शासन के दौरान ब्
वहीं 'कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्ज़ कमीशन' द्वारा तैयार की गई लिस्ट के अनुसार इंडिया गेट पर 13,220 सैनिकों के नाम लिखे हैं जो 1914 से 1919 के बीच ब्रितानी शासन के लिए लड़े थे.
कमीशन ने सैनिकों की इस लिस्ट को उनके सेवा-क्षेत्र (आर्मी, एयर फ़ोर्स और नेवी) के आधार पर बांटा है जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं.
'कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्ज़ कमीशन' के बुनियादी उसूलों के अनुसार इन सैनिकों के बीच उनके पद, नस्ल और धर्म के आधार पर कभी कोई अंतर नहीं किया गया.
पर क्या इन सैनिकों को 'स्वतंत्रता सेनानी' कहा जा सकता है?
इसके जवाब में इतिहासकार हरबंस मुखिया कहते हैं, "ये बात सही है कि ब्रिटिश आर्मी के लिए भारतीय लोग अफ़्रीका, यूरोप और अफ़गानिस्तान में बहादुरी से लड़े. पर वो लड़ाई औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़ नहीं थी. वो ब्रिटिश शासन की तरफ से लड़ रहे थे. उन्हीं की याद में अंग्रेज़ों ने ये स्मारक बनवाया. ये एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इंडिया गेट भारतीयों द्वारा बनवाया गया स्मारक नहीं है. ऐसे में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी कैसे कहा जा सकता है."
वो कहते हैं, "आज़ादी की लड़ाई यूं तो दशकों लंबी रही. कई मोर्चों पर इसे लड़ा गया. लेकिन जिस वक़्त अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारतीय लोगों की लड़ाई ने निर्णायक मोड़ लिया, उस समय इंडिया गेट बन चुका था."
सरकारी डेटा के अनुसार साल 1921 में इंडिया गेट की नींव रखी गई थी. इसे एडवर्ड लुटियन्स ने डिज़ाइन किया था और दस साल बाद वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इसे भारत के लोगों को समर्पित कर दिया था.
रिटिश आर्मी के लिए लड़ते हुए मारे गए भारतीयों की याद में बनाया गया था जिसे पहले 'ऑल इंडिया वॉर मेमोरियल' कहा जाता था.
वेबसाइट के मुताबिक़ इस स्मारक पर 13,516 भारतीय सैनिकों के नाम लिखे हुए हैं. इनमें 1919 के अफ़गान युद्ध में मारे गए भारतीय सौनिकों के नाम भी शामिल हैं.
लेकिन अपनी पड़ताल में हमने पाया कि सांसद असदउद्दीन ओवैसी का ये दावा बिल्कुल ग़लत है.

Friday, August 23, 2019

رئيس الوزراء السوداني الجديد يُنصح بـ"الابتعاد عن السياسة"

احتلت التطورات المتسارعة في السودان حيزا كبيرا من اهتمامات الصحف العربية بنسختيها الورقية والإلكترونية.
وكان الفريق عبدالفتاح البرهان أدى اليمين الدستورية رئيسا للمجلس السيادي المشكل حديثاً لإدارة شؤون البلاد خلال الفترة الانتقالية التي تستمر ثلاث سنوات لحين إجراء انتخابات.
قام عدد من المعلقين السودانين بإسداء النصح لرئيس الوزراء الجديد كي ينجح في عمله في القترة المقبلة.
وتحت عنوان "إلى عبدالله حمدوك"، كتب زهير السراج في صحيفة "الجريدة" يقول: "نصيحتي لحمدوك، اترك وراءك تماما طريق الساسة عندما تتسلم منهم قائمة الستين مرشحا لتختار من بينهم أعضاء حكومتك العشرين، ولا تنشغل بهم بعد ذلك ولا بصراعاتهم ومعاركهم وأحاديثهم أو حتى نصائحهم، وانشغل فقط بالمهمة الكبيرة التي تنتظرك، مهمة التخلص من الإرث المؤلم وإعادة بناء السودان من جديد".
ويضيف الكاتب "خذ حذرك يا حمدوك، ابتعد عن الساسة، وقل لمن يعتقدون أنهم جاءوا بك الى رئاسة الوزارة (شكر الله سعيكم)، فالذي أتى بك هو الشعب، وهو الذى ينتظرك بفارغ الصبر لتضعه على أول الطريق، وهو الذى يجب أن تستمع إليه وتطيعه، وإلا سيكون مصيرك مصير من سبقوك".
وفي السودان اليوم، يقول الطيب مصطفى إن حمدوك "يحتاج بالفعل أن يكون حراً لا مقيدا، وأن يكون على مسافة واحدة من الجميع، وأن يضع نصب عينيه أن مهمته الأساسية أن ينقل البلاد إلى نظام ديمقراطي مستدام وحكم راشد من خلال تهيئة المناخ ووضع الأساس الراسخ والعادل لتحقيق ذلك الهدف الكبير".
ويضيف مصطفى: "عليه أن يعطي الأولوية لتحقيق السلام حتى تنخرط جميع القوى السياسية في العمل السياسي السلمي بغرض إبدال صندوق الذخيرة بصندوق الانتخابات وحتى نحقق ديمقراطية مكتملة الأركان لا تشوبها شائبة ويتوقف الاحتراب والتنازع ومسيرة الدماء والدموع التي عطلت مسيرة بلادنا".
وفي الشرق الأوسط اللندنية، يقول عثمان ميرغني "تشكيل مجلس السيادة وتعيين رئيس الوزراء يمثلان خطوتين مهمتين في عملية انتقال السلطة وملء الفراغ الحاصل منذ 11 أبريل/نيسان الماضي، والناس يتطلعون الآن لتجاوز أي منغصات طارئة، وبدء العمل الحقيقي والجاد لإخراج البلاد من الوضع المتردي الذي آلت إليه في كل المناحي.
فالثورة لم تنتصر لمجرد تشكيل هياكل السلطة الانتقالية، أو قسم منها، ونجاحها سيكون بالنتائج على الأرض، والمشوار يبقى طويلاً ويحتاج إلى اليقظة من قوى الثورة وشبابها وكنداكاتها في ظل التحديات الكثيرة ووجود متربصين من بقايا النظام الساقط ودولة الإسلامويين العميقة، وبعض الانتهازيين من متحيني الفرص اللاهثين وراء المناصب والمنافع".
كما يقول رشيد حسن في الدستور الأردنية إن التطورات الإيجابية الأخيرة في السودان تثبت "أن الشعوب العربية قادرة على كنس الدكتاتورية والاستبداد، وعلى كنس الفساد والمفسدين، وقادرة على إقامة أنظمة ديمقراطية تستند فعلا على إرادة الشعوب العربية، شأنها شأن الدول الديقراطية في أوروبا وأمريكا اللاتينية وآسيا وأفريقيا".
ويضيف حسن "نجاح الثورة السودانية هو رسالة إلى الشعوب العربية والإسلامية من جاكرتا وحتى طنجة، بأن تنهض وتعود إلى الحياة، وتكسر الأغلال والأصفاد، وتضع حدا للاستبداد، فيما بقية الشعوب ترزح تحت خط الفقر، وتحت خط الكرامة، وقد استقوى عليها بغاث الطير ودود الأرض تنهش لحمها الحي".
وتحت عنوان "السودان نحو حياة أكثر ازدهارا"، تقول البيان الإماراتية في افتتاحيتها إن تشكيل المجلس السيادي وتعيين حمدوك "أغلق الباب أمام نار الفتنة التي حاولت طيور الظلام تأجيجها على مدار الأيام الأخيرة، كما أنه يفتح آفاقاً جديدة أمام الشعب السوداني الشقيق نحو حياة أفضل وأكثر ازدهارا واستقرارا".
وتضيف البيان أن هذه التطوارات قد "تزامنت مع بدء محاكمة عمر البشير بتهمة الفساد، حيث شاء القدر أن يطوي الشعب الشقيق صفحة الماضي، ويفتح الطريق واسعا أمام تحول مدني ديمقراطي، يعيد السودان إلى المكانة التي يستحقها على الخريطة الإقليمية والدولية".

Tuesday, June 25, 2019

पाकिस्तान और बांग्लादेश बाकी बचे कम से कम दो मैच हार जाएं

इंग्लैंड में खेला जा रहा वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट अपने शबाब पर है. कुछ मुक़ाबले दिल की धड़कनें बेहद तेज़ कर देने वाले रहे हैं और चौंकाने वाले भी.
एक पखवाड़े पहले दक्षिण अफ्रीका सरीखी टीमों को खिताब का दावेदार बताया जा रहा था, लेकिन बड़े टूर्नामेंट में एक बार फिर इस टीम ने अपने खेल से निराश किया और सात मैचों में सिर्फ़ एक मुक़ाबला जीत कर नॉकआउट हो चुकी है.
टूर्नामेंट में अब तक कम से कम चार मैच तो ऐसे रहे, जिन्होंने साबित किया कि मैच से पहले भले ही किसी टीम को फ़ेवरेट माना जाए, लेकिन जब खिलाड़ी मैदान पर उतरते हैं असल इम्तहान तभी होता है.
जैसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ रहा है अंकों के जोड़-तोड़ का खेल भी तेज़ हो गया है. श्रीलंका की इंग्लैंड पर जीत और फिर पाकिस्तान के दक्षिण अफ्रीका हराने के बाद सेमीफ़ाइनल मुक़ाबलों की जंग भी दिलचस्प होती दिख रही है.
राउंड रॉबिन लीग मुकाबले में पाकिस्तान को शिकस्त देने के बाद क्रिकेट प्रशंसक ये जानने के लिए बेताब हैं कि क्या भारत अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी से एक बार फिर टकरा सकता है.
अभी अंक तालिका में टॉप चार टीमें न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, भारत और मेज़बान इंग्लैंड हैं.
भारत से हारने के बाद अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से हारने के बाद दक्षिण अफ्रीका के लिए टूर्नामेंट के दरवाज़े बंद हो गए हैं.
अभी छह मैचों में पाँच अंक लेकर पाकिस्तान सातवें नंबर पर है. तो अब पाकिस्तान कैसे अंतिम चार में पहुँच सकती है.
न्यूज़ीलैंड- छह मैचों में पाँच जीत के साथ 11 अंक लेकर टॉप पर है. इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मैच बाकी. बस एक और जीत से कीवियों की सेमीफ़ाइनल में जगह पक्की हो जाएगी.
(लेकिन तब क्या अगर न्यूज़ीलैंड तीन में से एक भी मुक़ाबला नहीं जीत सकी. तो उसके 11 अंक ही रहेंगे, लेकिन इस स्थिति में श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के लिए बचे तीन-तीन मुक़ाबलों में से कम से कम एक में हार ज़रूरी है, ताकि तीनों 10 अंकों तक न पहुँच सकें.)
ऑस्ट्रेलिया
छह मैचों में 5 जीत के साथ 10 अंक लेकर दूसरे नंबर पर है कंगारू टीम. ऑस्ट्रेलिया अभी तक सिर्फ़ अपना मुक़ाबला भारत से हारा है.
एरोन फ़िंच की टीम के इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ मैच बाकी हैं. एक और जीत देगी सेमीफ़ाइनल में पहुँचने की गारंटी.
(लेकिन अगर वो बचे तीनों मुक़ाबलों में से एक भी नहीं जीत सकी तो..... ऑस्ट्रेलिया के 10 अंक ही रह जाएंगे. ऐसे में कंगारुओं को उम्मीद करनी होगी कि श्रीलंका कम से कम दो मैचों में परास्त हो और बांग्लादेश और पाकिस्तान भी कम से कम एक-एक मुक़ाबला गंवा दें. इस तरह श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान तीनों 11 अंक हासिल नहीं कर पाएंगे.)
भारत
अभी तक टूर्नामेंट में अपराजेय रही है विराट कोहली की टीम. पाँच मैचों में चार जीत के साथ 9 अंक लेकर तीसरे नंबर पर है.
टीम इंडिया दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को शिकस्त दे चुकी है और बारिश से बाधित मैच में न्यूज़ीलैंड से अंक बांटा है.
वेस्ट इंडीज़, इंग्लैंड, बांग्लादेश और श्रीलंका के ख़िलाफ़ मैच बाकी. दो मैचों में जीत से तय हो जाएगी सेमीफ़ाइनल में जगह पक्की.
(लेकिन अगर टीम इंडिया बाकी बचे चार मैचों में से एक भी नहीं जीत पाई तो....भारत के नौ ही अंक रह जाएंगे. ऐसे में टीम इंडिया ये उम्मीद करेगी कि श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश बाकी बचे एक से अधिक मैच न जीत पाएं. साथ ही वेस्टइंडीज़ भी कम से कम एक मैच हार जाए.)
इंग्लैंड
आईसीसी की वनडे रैंकिंग में नंबर एक मेज़बान टीम इंग्लैंड छह मैचों में 4 जीत के साथ आठ अंक लेकर चौथे नंबर पर है.
अभी ऑस्ट्रेलिया, भारत और न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ मैच खेलने बाकी. सेमीफ़ाइनल में पहुँचने के लिए दो मैच जीतने ही होंगे.
(लेकिन अगर अंग्रेज़ टीम बाकी तीनों में से एक भी मैच नहीं जीत पाई तो.....इंग्लैंड के आठ ही अंक रह जाएंगे और वो टूर्नामेंट से बाहर होने के कगार पर होगी. लेकिन कुछ अगर-मगर उसे सेमीफ़ाइनल में पहुँचा सकते हैं.

Monday, June 10, 2019

कठुआ गैंग रेप: तीन को उम्र क़ैद, तीन को 5-5 साल की क़ैद

जम्मू-कश्मीर के कठुआ में पिछले साल जनवरी महीने में आठ साल की एक बच्ची के साथ गैंग रेप, प्रताड़ना और हत्या मामले में छह दोषियों में से तीन को अदालत ने उम्र क़ैद की सज़ा दी है.
इस सनसनीखेज गैंग रेप के बाद देश भर में ग़ुस्सा देखा गया था. पूर्व सरकारी अधिकारी सांजी राम को इस मामले का मास्टरमाइंड माना जा रहा था. पठानकोट की फास्ट ट्रैक अदालत ने राम को भी उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है.
सबूतों के अभाव में सांजी राम के बेटे को अदालत ने रिहा कर दिया है. इसके साथ ही दो पुलिस वालों को भी पाँच-पाँच साल की क़ैद की सज़ा सुनाई है.
सांजी राम के अलावा परवेश कुमार, दो स्पेशल पुलिस ऑफिसर दीपक कुमार और सुरेंदर वर्मा, हेड कॉन्स्टेबल तिलक राज और सब-इंस्पेक्टर आनंद दत्ता को इस मामले में दोषी ठहराया गया है. पुलिसकर्मियों को सबूतों को मिटाने में दोषी ठहराया गया है.
सांजी राम राजस्व विभाग के रिटायर्ड अधिकारी हैं, दीपक खजुरिया स्पेशल पुलिस ऑफिसर हैं. इन दोनों के अलावा सांजी राम के दोस्त परवेश कुमार को भी उम्र क़ैद की सज़ा दी गई है.
कोर्ट के फ़ैसले के बाद पीड़िता की मां ने मुख्य अभियुक्त सांझी राम को फांसी देने की मांग की थी.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "मुझे राहत मिली है, लेकिन न्याय तब मिलेगा जब सांझी राम और विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया को फांसी दी जाएगी."
"मेरी बेटी का चेहरा आज भी मुझे परेशान करता है और यह दर्द जीवनभर रहेगा. जब मैं उसकी उम्र के दूसरे बच्चों को खेलते देखती हूं तो मैं अंदर से टूट जाती हूं."
पीड़िता पक्ष के वकील मुबीन फ़ारूकी ने कहा, "आज सच की जीत हुई है. आज पूरे देश की जीत हुई है. पूरे देश ने यह लड़ाई मिल कर लड़ी थी. दीपक खजुरिया, प्रवेश कुमार और सांझी राम को 376डी, 302, 201, 363, 120बी, 343 और 376बी के तहत दोषी ठहराया गया है. वहीं तिलक राज, आनंद दत्ता और सुरिन्दर वर्मा को आईपीसी की धारा 201 के तहत दोषी ठहराया गया है. यह संवनैधानिक भावना की जीत है. सत्यमेव जयते."
वहीं अभियुक्तों के वकील ने हाई कोर्ट जाने की बात कही है.
पुलिस के मुताबिक़ बच्ची को कई दिनों तक ड्रग्स देकर बेहोश रखा गया था. उसे पिछले साल 10 जनवरी को अग़वा किया गया था और क़रीब एक सप्ताह बाद उसका शव मिला था. इस मामले को लेकर देशभर में प्रदर्शन हुए थे.
मामले की सुनवाई बंद कमरे में तीन जून को पूरी कर ली गई थी और फ़ैसला 10 जून को सुनाना तय हुआ था.
सोमवार को क़रीब दस बजे मामले के सभी सात अभियुक्तों को कोर्ट लाया गया. इसके बाद फ़ैसले को सुनाने की कार्यवाही शुरू हुई.
मामले का आठवां अभियुक्त नाबालिग़ है.
फ़ैसले को लेकर जम्मू के कठुआ में सुरक्षा बढ़ा दी गई है. ज़िले में अतिरिक्त सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है. पठानकोट में कोर्ट के बाहर भी भारी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है.
सुप्रीम कोर्ट की दख़ल के बाद पठानकोट में शुरू हुई थी सुनवाई
कठुआ रेप और हत्या मामले में जब पुलिस चार्जशीट दायर करने जा रही थी तो रास्ते में कुछ स्थानीय पत्रकारों ने उनका रास्ता रोक लिया था. अभियुक्तों के पक्ष में रैलियां निकाली गई थीं.
इसे देखते हुए मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दख़ल दिया और आदेश दिया कि मामले का ट्रायल जम्मू से बाहर पठानकोट में किया जाएगा और इस ट्रायल में हर दिन कैमरे के सामने कार्यवाही होगी.
इस मामले की गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुनने को मिली थी. अप्रैल 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने आठ वर्षीय बच्ची से रेप और हत्या की घटना को 'डरावना' बताया था. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि इस संबंध में प्रशासन न्याय ज़रूर सुनिश्चित करवाएगा.

Wednesday, April 24, 2019

كيف تتغلب على مشكلة تأجيل الأعمال حتى اللحظات الأخيرة؟

شعر أصدقاء الموسيقار الشهير موتسارت بالقلق عندما شاهدوه يحتسي الخمر في الثالث من نوفمبر/تشرين الثاني عام 1787، لأن ذلك كان اليوم السابق لأحدث عروضه الموسيقية آنذاك، والذي كان يحمل اسم "دون جيوفاني".
ونعرف أن هذا العمل أصبح لاحقا أحد أشهر الأعمال الموسيقية في التاريخ وأبرز روائع الموسيقى التي مازال صداها يتردد في دور الأوبرا حول العالم منذ مئات السنين.
وكانت هناك مشكلة واحدة، وهي أن وولفغانغ أماديوس موتسارت لم يكن قد ألف بعد مقدمة العمل! ويبدو أن هذا الموسيقي الفذ كان يرجئ عمله حتى اللحظات الأخيرة. وكان موتسارت قد عمل فعلا خلال ذلك اليوم، لكن على شيء آخر.
وبحسب ما نشر عام 1845 من رواية للأحداث في تلك الفترة، تمكن رفاق موتسارت أخيرا من إقناعه بأنه لم يعد هناك متسع من الوقت لتأجيل الأمر أكثر من ذلك، فعاد إلى غرفته في منتصف الليل وظل يعمل دون توقف وعملت زوجته جاهدة على إبقائه مستيقظا طوال الليل. وفي النهاية، أنجز المهمة لكن عرض الأمسية التالية تأخر بسبب عدم طباعة المقدمة الموسيقية والتدرب عليها في الموعد المحدد.
وإذا كنت مثل موتسارت تقضي الوقت في أي شيء غير مهم وتؤجل عملك الأساسي حتى آخر لحظة، فقد تكون بحاجة إلى المساعدة للتغلب على هذا الأمر.
ورغم أن من يؤجلون عملهم يبدون وكأنهم فخورون بما يفعلونه، فهناك أدلة متنامية على أن تأجيل الأعمال أمر سيء.
وقد خلصت دراسة أجريت عام 2013 إلى أن من يؤجلون عملهم يحصلون على أقل الرواتب ولا يدوم عملهم طويلا، ويرجح انضمامهم لصفوف العاطلين بشكل أو آخر.
كما أنه ليس هناك متعة حقيقية تعود على المرء من تأجيل العمل، إذ نعلم في قرارة أنفسنا أن التأجيل يزيدنا توترا، وقد يصيبنا بالمرض ويدمر حياتنا.
وهناك أسلوب مبتكر لمساعدة من يعانون من تأجيل العمل. ويعتمد هذا الأسلوب على وضع جدول أسبوعي يحدد أوقاتا بعينها لمهام محددة. لكن الجديد هو جدولة الأنشطة التي يحبها المرء، وليس مهام العمل، مثل لقاء الأصدقاء على العشاء والأنشطة التي تجعل المرء سعيدا وقادرا على العمل، مثل تخصيص وقت للركض، وساعات كافية للنوم كل ليلة، وأخيرا إضافة الالتزامات المسبقة من قبيل الإجازات والاجتماعات.
ولا يحتوي الجدول أبدا على أشياء من قبيل "كتابة مذكرة" أو "الانتهاء من مشروع" أو "مراجعة للامتحانات" أو غيرها من مهام العمل التقليدية.
وكان أول من توصل إلى هذا الأسلوب هو نيل فيور، وهو عالم نفس ومتخصص في علاج مشكلة التأجيل، والذي تحدث عن ذلك الأسلوب في كتابه "العادة الراهنة" عام 1988. وقد أشاد كثيرون بهذا الأسلوب وتحدثوا عنه في مدونات ومقاطع فيديو على الإنترنت، واستشهدوا به في المؤلفات التي تقدم نصائح للمساعدة على التخلص من مشكلة التأجيل، حتى أصبح مألوفا ضمن نصائح المعالجين النفسيين.
في البداية، لاحظ فيور مخاطر التأجيل خلال عمله بجامعة كاليفورنيا في بيركلي. ففي ذلك الوقت، كان فيور قد صاغ أطروحته للدكتوراة خلال عام واحد - وهو أمر رائع للغاية، نظرا لأن الوقت يمتد في المتوسط تسعة أو عشرة أشهر أكثر مما يخطط له الطالب وتنتهي المهمة في بعض الأحيان بعد عشرات السنين (الرقم القياسي للحصول على الدكتوراة هو 77 عاما، وإن كانت هناك ظروف قهرية). لذا، بدأ فيور يقدم الدعم للأشخاص الذين يواجهون صعوبات تتعلق بالانتهاء من أطروحاتهم.
وخلال الأشهر التالية، لاحظ فيور أمرا لم يتوقعه، ويقول عن ذلك: "من انتهوا من أطروحاتهم خلال عام إلى عامين كانوا الأكثر انشغالا في حياتهم مقارنة بمن أنهوها خلال ثلاثة إلى 13 عاما، إذ كان عليهم مراعاة علاقات اجتماعية ومناسبات عامة. وفي حالتي كنت أعمل أيضا في وظيفة تأخذ من وقتي 40 ساعة أسبوعيا".
ويفيد وضع جدول للأنشطة في أنه بدلا من التفكير باستمرار في المهام المطلوبة والاجتماعات المملة التي تثقل الحياة وتصيب الشخص بالملل، يجد المرء أمامه أسبوعا يتطلع إليه وبإمكانه أن يتحكم في مساره. كما أن تحديد الأوقات المخصصة للمتعة والالتزامات الأخرى يجعل المرء يعرف جيدا الوقت المتبقي للعمل، وبالتالي يبادر بالتحرك من أجل إنهاء هذا العمل!
ودائما ما يكون الشيء الأصعب هو التحرك لبدء العمل، لذا يجب فهم الأسباب التي تجعل الشخص يتلكأ في المقام الأول. فما الذي يدفعنا للشعور بالقلق لساعات بينما يمكننا بدء العمل فورا؟
وتشجع جين بيركا، عالمة نفس بأوكلاند كاليفورنيا والتي شاركت هي وزميلتها لينورا يوين في تأليف كتاب "لماذا نتلكأ وكيف نكف عن التأجيل الآن"، الاعتماد على وضع جدول للأنشطة التي يعتزم المرء القيام بها.
وكانت بيركا قد التقت بزميلتها يوين أثناء عملهما بمركز استشارات الطلبة بجامعة كاليفورنيا بيركلي. وكما حدث مع فيور، بدأت بيركا تبحث في أمر مسألة التأجيل بعد ما لاحظت معاناة طلبة الدكتوراة.
ولاحظت بيركا ويوين أن هناك قواسم مشتركة بين من يؤجلون العمل، مثل التعامل مع الوقت بشكل غير واقعي والرغبة في الوصول إلى الكمال. ولاحظت بيركا أن هناك جذورا أعمق من الناحية النفسية لعملية تأجيل العمل، رغم أن الكثيرين يعتبرون "التراخي مشكلة بسيطة لا علاقة لها إلا بسوء إدارة الوقت والكسل".
لكن بيركا تقول: "من يعانون من عادة تأجيل الأمور يحملون فشلهم على شماعة التأجيل بدلا من الاعتراف بأن العمل الذي قاموا به لم يكن على المستوى المطلوب. أما إذ حالفهم النجاح في اللحظة الأخيرة فسيهنئون أنفسهم بقدرتهم على إنجاز المستحيل في الوقت الضائع".
وهنا يأتي الجزء الثاني من طريقة جدولة الأنشطة. فبعد وضع الجدول الأسبوعي يتعين عليك ألا تقلق نفسك بخطط لا تستطيع تنفيذها. وبدلا من ذلك، يُنصح بالتركيز على المهمة المطلوبة لمدة 15 دقيقة فقط، لأن أي شخص يستطيع الالتزام لفترة قصيرة من الوقت. لكن الأهم هو البدء فعلا في العمل بدلا من التركيز على النهاية، وهو ما يساعد على تجنب بعض المخاوف التي قد تكون لدى البعض بشأن تحقيق أهدافهم.
تقول بيركا إن النجاح يعتمد على إنجاز المهام الصغيرة في وقتها بدلا من القيام بجهد هائل مرة واحدة.
وقد توصل فيور إلى فكرة "الدقائق الخمس عشرة" حين كان يساعد أشخاصا يعانون من مخاوف مرضية، ويقول عن ذلك: "عالجت مشكلة التأجيل باعتبارها قلقا مرضيا من العمل، فالمرء يتجنب ما يعتبره تهديدا خطيرا، والسبيل للتغلب على هذا الخوف هو مواجهته على دفعات صغيرة".
وقد أظهرت بحوث طبية أن الأشخاص الذين يؤجلون عملهم يعانون في الغالب من الاكتئاب والقلق. كما وجدت دراسة أجريت عام 2014 أن الطلبة الذين يعانون من اضطراب نقص الانتباه مع فرط النشاط يرجح أن يعمدوا للتأجيل، بل يرجح البعض أن موتسارت كان سيشخص بالإصابة بهذا الاضطراب أو بمتلازمة "توريت" الشبيهة، لو كان بيننا اليوم.
فقد كتب متابع لسيرته الذاتية أنه كان يتشتت بسهولة دون أن يولي انتباهه للأمور الهامة. وقالت شقيقته ذات يوم إنه "يتصرف كالأطفال". ولا شك أن الموسيقي الفذ كان يعاني من مشكلات كانت تجعله يؤجل الأمور حتى اللحظات الأخيرة.
وأخيرا، يوصي فيور بتبني لغة جديدة لوصف العمل، فبدلا من القول "يجب أن" أو "لابد أن" يقترح القول "اخترت أن"، وهو ما يضع العمل في دائرة إيجابية ويحسم المعركة الداخلية بين الرغبة في التأجيل والحافز للذهاب للعمل.

Thursday, March 14, 2019

जरनैल सिंह भिंडरांवाले: सिख संत से खालसा चरमपंथी तक

पिछले साल अक्टूबर में लायन एयरलाइंस का बोइंग मैक्स विमान भी जकार्ता से उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद हादसे का शिकार हो गया था और 189 लोगों की जान चली गई थी.
लायन एयरलाइंस ने इस विमान को हादसे से तीन महीने पहले ही अपने बेड़े में शामिल किया था.
बोइंग 737 मैक्स-8 का कॉमर्शियल इस्तेमाल 2017 में ही शुरू हुआ था और सुरक्षा को लेकर कंपनी ने बड़े-बड़े दावे भी किए थे.
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ख़ास माना जाता है. ऐसा नहीं है कि डोभाल मोदी के पीएम बनने के बाद बीजेपी के क़रीब आए. डोभाल को लालकृष्ण आडवाणी भी काफ़ी तवज्जो देते थे.
कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी डोभाल को किसी नेता की तरह निशाने पर ले रहे हैं. डोभाल की पहचान एक तेज़-तर्रार जासूस और रक्षा विशेषज्ञ की रही है. लेकिन हाल के दिनों में भारत पर हुए कई आतंकी हमले और पड़ोसियों से ख़राब हुए संबंधों के कारण डोभाल की नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसी सप्ताह कहा था कि पुलवामा हमले के दोषी मसूद अज़हर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ख़ुद ही विमान में कंधार (अफ़गानिस्तान) छोड़कर आए थे.
हालांकि आधकारिक रिकॉर्ड के अनुसार मसूद अज़हर समेत तीन चरमपंथियों को भारत से कंधार ले जाने वाले विमान के दिल्ली से उड़ान भरने से पहले ही अजित डोभाल (जो उस वक्त इंटेलिजेंस ब्यूरो में काम करते थे) कंधार में ही मौजूद थे.
कांग्रेस के मीडिया सेल के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने एक के बाद एक ट्वीट कर कहा है, "आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में NSA के अजित डोभाल ने कांग्रेस-UPA सरकार की नीति को राष्ट्र हितों में बताया. '  सरकार हाईजैकिंग को लेकर ठोस नीति लाई है- न कोई रियायत और न आतंकवादियों से बातचीत." भाजपा सरकार इस तरह की हिम्मत क्यों नहीं दिखा रही है."
रणदीप सुरजेवाला ने साल 2010 का विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में प्रकाशित एक लेख का लिंक भी ट्वीट किया है.
पत्रकार हैरिंदर बवेजा को दिए इस इंटरव्यू में अजित डोभाल कहते हैं कि "कंधार हाईजैक के वक्त उन्हें ये पता चल गया था कि मसूद अज़हर बेहद अहम नाम है और सुरक्षा और ख़ुफ़िया जानकारी के अनुसार उसको रिहा करना एक ग़लती थी. ऐसा नहीं होना चहिए था. लेकिन एक बड़े राजनीतिक... ये फ़ैसला लेना उनका काम था."
हालांकि एक अन्य सवाल के उत्तर में अजित डोभाल कहते हैं "सुरक्षा के लिहाज़ से सरकार के सभी फ़ैसले मानने होते हैं. राजनीतिक सोच-समझ और व्यापक राष्ट्र हित के आधार पर अगर ये फ़ैसला लिया गया है तो ज़ाहिर है ये मानना होगा."
इस विवाद के मद्देनज़र एक नज़र डालते हैं कि 1999 के उस वाक़ये पर जब भारतीय एयरलाइन्स के विमान का अपहरण हुआ था, और जानते हैं कि अपहरण को दौरान तालिबान से बातचीत करने वाले भारतीय दल में अजित डोभाल की क्या भूमिका थी.
बात 1988 की है. स्वर्ण मंदिर के पास जहाँ एक ज़माने में जरनैल सिंह भिंडरावाले की तूती बोलती थी, वहाँ अमृतसर के लोगों और ख़ालिस्तानी अलगाववादियों ने एक रिक्शावाले को बहुत तन्मयता से रिक्शा चलाते देखा. वो इस इलाक़े में नया था. वैसा ही लग रहा था जैसे आम तौर से रिक्शावाले लगते हैं. लेकिन फिर भी ख़ालिस्तानियों को उस पर कुछ-कुछ शक हो चला था.
स्वर्ण मंदिर की पवित्र दीवारों के आसपास ख़ुफ़ियातंत्र के पैतरों और जवाबी पैतरों के बीच उस रिक्शा वाले को ख़ालिस्तानियों को ये विश्वास दिलाने में दस दिन लग गए कि उसे आईएसआई ने उनकी मदद के लिए भेजा है.
ऑपरेशन ब्लैक थंडर से दो दिन पहले वो रिक्शावाला स्वर्ण मंदिर के अहाते में घुसा और पृथकतावादियों की असली पोज़ीशन और संख्या के बारे में महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया जानकारी लेकर बाहर आया. वो रिक्शावाला और कोई नहीं भारत सरकार के वर्तमान सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल थे.
ख़ुफ़िया तंत्र के अलिखित क़ानून का पालन करते हुए डोभाल को नज़दीक से जानने वाले लोग इस कहानी को सुनकर तुरंत कहते हैं कि इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है, लेकिन ये साफ़ पढ़ा जा सकता है कि इसे सुन कर उनके चेहरे पर एक ख़ास क़िस्म की मुस्कान आ जाती है.
बहुत इसरार करने और नाम न बताने की शर्त पर इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं, "इस ऑप्रेशन में बहुत बड़ा जोख़िम था लेकिन हमारे सुरक्षा बलों को ख़ालिस्तानियों की योजना का पूरा ख़ाका अजित डोभाल ने ही उपलब्ध कराया था. नक्शे, हथियारों और लड़ाकों की छिपे होने की सटीक जानकारी डोभाल ही बाहर निकाल कर लाए थे."
इसी तरह अस्सी के दशक में डोभाल की वजह से ही भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी मिज़ोरम में पृथकतावादियों के शीर्ष नेतृत्व को भेदने में सफल रही थी और चोटी के चार बाग़ी नेताओं ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने हथियार डाले थे.
डोभाल के मातहत काम कर चुके एक अधिकारी बताते हैं, "हम लोगों पर कोई ड्रेस कोड लागू नहीं था. हम लोग कुर्ता पायजामा, लुंगी और साधारण चप्पल पहन कर घूमा करते थे. सीमा पार जासूसी के लिए जाने से पहले हम लोग दाढ़ी बढ़ाते थे."
वो कहते हैं, "अंडर कवर रहना सीखने के लिए हम लोग जूते बनाने तक का काम सीखते थे ताकि हम टारगेटेड इलाक़े में मोची का काम करते हुए ख़ुफ़िया जानकारी जमा कर सकें."