पिछले साल अक्टूबर में लायन एयरलाइंस का बोइंग मैक्स विमान भी जकार्ता से उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद हादसे का शिकार हो गया था और 189 लोगों की
जान चली गई थी.
लायन एयरलाइंस ने इस विमान को हादसे से तीन महीने पहले ही अपने बेड़े में शामिल किया था.
बोइंग 737 मैक्स-8 का कॉमर्शियल इस्तेमाल 2017 में ही शुरू हुआ था और सुरक्षा को लेकर कंपनी ने बड़े-बड़े दावे भी किए थे.
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का ख़ास माना जाता है. ऐसा नहीं है कि डोभाल मोदी के पीएम
बनने के बाद बीजेपी के क़रीब आए. डोभाल को लालकृष्ण आडवाणी भी काफ़ी तवज्जो
देते थे.
कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी डोभाल को किसी नेता
की तरह निशाने पर ले रहे हैं. डोभाल की पहचान एक तेज़-तर्रार जासूस और
रक्षा विशेषज्ञ की रही है. लेकिन हाल के दिनों में भारत पर हुए कई आतंकी
हमले और पड़ोसियों से ख़राब हुए संबंधों के कारण डोभाल की नीतियों पर सवाल
उठ रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसी सप्ताह कहा था कि
पुलवामा हमले के दोषी मसूद अज़हर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
अजित डोभाल ख़ुद ही विमान में कंधार (अफ़गानिस्तान) छोड़कर आए थे.
हालांकि आधकारिक रिकॉर्ड के अनुसार मसूद अज़हर समेत तीन चरमपंथियों को
भारत से कंधार ले जाने वाले विमान के दिल्ली से उड़ान भरने से पहले ही अजित डोभाल (जो उस वक्त इंटेलिजेंस ब्यूरो में काम करते थे) कंधार में ही मौजूद थे.
कांग्रेस के मीडिया सेल के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने एक के बाद एक ट्वीट कर कहा
है, "आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में NSA के अजित डोभाल ने कांग्रेस-UPA
सरकार की नीति को राष्ट्र हितों में बताया. ' सरकार हाईजैकिंग को लेकर
ठोस नीति लाई है- न कोई रियायत और न आतंकवादियों से बातचीत." भाजपा सरकार इस तरह की हिम्मत क्यों नहीं दिखा रही है."
रणदीप सुरजेवाला ने साल 2010 का विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में प्रकाशित एक लेख का लिंक भी ट्वीट किया है.
पत्रकार
हैरिंदर बवेजा को दिए इस इंटरव्यू में अजित डोभाल कहते हैं कि "कंधार हाईजैक के वक्त उन्हें ये पता चल गया था कि मसूद अज़हर बेहद अहम नाम है और सुरक्षा और ख़ुफ़िया जानकारी के अनुसार उसको रिहा करना एक ग़लती थी. ऐसा
नहीं होना चहिए था. लेकिन एक बड़े राजनीतिक... ये फ़ैसला लेना उनका काम
था."
हालांकि एक अन्य सवाल के उत्तर में अजित डोभाल कहते हैं
"सुरक्षा के लिहाज़ से सरकार के सभी फ़ैसले मानने होते हैं. राजनीतिक सोच-समझ और व्यापक राष्ट्र हित के आधार पर अगर ये फ़ैसला लिया गया है तो
ज़ाहिर है ये मानना होगा."
इस विवाद के मद्देनज़र एक नज़र डालते हैं कि 1999 के उस वाक़ये पर जब भारतीय एयरलाइन्स के विमान का अपहरण हुआ था, और
जानते हैं कि अपहरण को दौरान तालिबान से बातचीत करने वाले भारतीय दल में अजित डोभाल की क्या भूमिका थी.
बात 1988 की है. स्वर्ण मंदिर के पास जहाँ एक ज़माने में जरनैल सिंह
भिंडरावाले की तूती बोलती थी, वहाँ अमृतसर के लोगों और ख़ालिस्तानी
अलगाववादियों ने एक रिक्शावाले को बहुत तन्मयता से रिक्शा चलाते देखा. वो
इस इलाक़े में नया था. वैसा ही लग रहा था जैसे आम तौर से रिक्शावाले लगते
हैं. लेकिन फिर भी ख़ालिस्तानियों को उस पर कुछ-कुछ शक हो चला था.
स्वर्ण
मंदिर की पवित्र दीवारों के आसपास ख़ुफ़ियातंत्र के पैतरों और जवाबी
पैतरों के बीच उस रिक्शा वाले को ख़ालिस्तानियों को ये विश्वास दिलाने में
दस दिन लग गए कि उसे आईएसआई ने उनकी मदद के लिए भेजा है.
ऑपरेशन
ब्लैक थंडर से दो दिन पहले वो रिक्शावाला स्वर्ण मंदिर के अहाते में घुसा और पृथकतावादियों की असली पोज़ीशन और संख्या के बारे में महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया जानकारी लेकर बाहर आया. वो रिक्शावाला और कोई नहीं भारत सरकार के वर्तमान सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल थे.
ख़ुफ़िया तंत्र के अलिखित
क़ानून का पालन करते हुए डोभाल को नज़दीक से जानने वाले लोग इस कहानी को
सुनकर तुरंत कहते हैं कि इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है, लेकिन ये
साफ़ पढ़ा जा सकता है कि इसे सुन कर उनके चेहरे पर एक ख़ास क़िस्म की मुस्कान आ जाती है.
बहुत इसरार करने और नाम न बताने की शर्त पर
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं, "इस ऑप्रेशन में बहुत बड़ा जोख़िम था लेकिन हमारे सुरक्षा बलों को ख़ालिस्तानियों की योजना
का पूरा ख़ाका अजित डोभाल ने ही उपलब्ध कराया था. नक्शे, हथियारों और लड़ाकों की छिपे होने की सटीक जानकारी डोभाल ही बाहर निकाल कर लाए थे."
इसी
तरह अस्सी के दशक में डोभाल की वजह से ही भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी मिज़ोरम में पृथकतावादियों के शीर्ष नेतृत्व को भेदने में सफल रही थी और चोटी के
चार बाग़ी नेताओं ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने हथियार डाले थे.
डोभाल
के मातहत काम कर चुके एक अधिकारी बताते हैं, "हम लोगों पर कोई ड्रेस कोड
लागू नहीं था. हम लोग कुर्ता पायजामा, लुंगी और साधारण चप्पल पहन कर घूमा करते थे. सीमा पार जासूसी के लिए जाने से पहले हम लोग दाढ़ी बढ़ाते थे."
वो
कहते हैं, "अंडर कवर रहना सीखने के लिए हम लोग जूते बनाने तक का काम सीखते
थे ताकि हम टारगेटेड इलाक़े में मोची का काम करते हुए ख़ुफ़िया जानकारी
जमा कर सकें."
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