सोशल मीडिया पर ये दावा किया जा रहा है कि 'दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान गंवाने
वाले लोगों के नाम लिखे हुए हैं जिनमें से 65 फ़ीसदी नाम हिन्दुस्तान के
मुसलमानों के हैं'.
जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर यह दावा किया है,
उन्होंने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुसलमीन पार्टी के चीफ़ और हैदराबाद
लोकसभा क्षेत्र के सांसद असदउद्दीन ओवैसी के एक हालिया भाषण का हवाला दिया
है.ओवैसी ने मुंबई के चांदीवली इलाक़े में 13 जुलाई 2019 को यह भाषण दिया था जिसके कुछ हिस्से अब सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं.
अपने इस भाषण में ओवैसी ने दावा किया था, "जब मैं इंडिया गेट गया तो मैंने वहाँ उन नामों की फ़ेहरिस्त को देखा जिन्होंने हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए अपनी जान गंवा दी. उस इंडिया गेट पर 95,300 लोगों के नाम लिखे हुए हैं. आपको ये जानकर ख़ुशी होगी कि उनमें से 61,945 सिर्फ़ मुसलमानों के नाम हैं. यानी 65 फ़ीसदी सिर्फ़ मुसलमानों के नाम हैं."
इसके बाद ओवैसी ने सभा में मौजूद लोगों से कहा कि बीजेपी, आरएसएस और शिवसेना का कोई आदमी अगर उनसे कहे कि वो देशभक्त नहीं हैं, तो वो उसे इंडिया गेट देखकर आने को कहें.
13 जुलाई को 'मीम न्यूज़ एक्सप्रेस' नाम के एक यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड हुए उनके इस भाषण को सवा लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है और उनके हवाले से सोशल मीडिया यूज़र्स अब इस दावे को वॉट्सऐप पर सर्कुलेट कर रहे हैं.
दिल्ली सरकार की वेबसाइट के अनुसार नई दिल्ली में स्थित 'इंडिया गेट' साल 1931 में बनकर तैयार हो गया था. यानी भारत की आज़ादी से क़रीब 16 साल पहले.
42 मीटर ऊंचा ये स्मारक अंग्रेज़ों के शासन के दौरान ब्
वहीं 'कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्ज़ कमीशन' द्वारा तैयार की गई लिस्ट के अनुसार इंडिया गेट पर 13,220 सैनिकों के नाम लिखे हैं जो 1914 से 1919 के बीच ब्रितानी शासन के लिए लड़े थे.
कमीशन ने सैनिकों की इस लिस्ट को उनके सेवा-क्षेत्र (आर्मी, एयर फ़ोर्स और नेवी) के आधार पर बांटा है जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं.
'कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्ज़ कमीशन' के बुनियादी उसूलों के अनुसार इन सैनिकों के बीच उनके पद, नस्ल और धर्म के आधार पर कभी कोई अंतर नहीं किया गया.
पर क्या इन सैनिकों को 'स्वतंत्रता सेनानी' कहा जा सकता है?
इसके जवाब में इतिहासकार हरबंस मुखिया कहते हैं, "ये बात सही है कि ब्रिटिश आर्मी के लिए भारतीय लोग अफ़्रीका, यूरोप और अफ़गानिस्तान में बहादुरी से लड़े. पर वो लड़ाई औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़ नहीं थी. वो ब्रिटिश शासन की तरफ से लड़ रहे थे. उन्हीं की याद में अंग्रेज़ों ने ये स्मारक बनवाया. ये एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इंडिया गेट भारतीयों द्वारा बनवाया गया स्मारक नहीं है. ऐसे में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी कैसे कहा जा सकता है."
वो कहते हैं, "आज़ादी की लड़ाई यूं तो दशकों लंबी रही. कई मोर्चों पर इसे लड़ा गया. लेकिन जिस वक़्त अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारतीय लोगों की लड़ाई ने निर्णायक मोड़ लिया, उस समय इंडिया गेट बन चुका था."
सरकारी डेटा के अनुसार साल 1921 में इंडिया गेट की नींव रखी गई थी. इसे एडवर्ड लुटियन्स ने डिज़ाइन किया था और दस साल बाद वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इसे भारत के लोगों को समर्पित कर दिया था.
रिटिश आर्मी के लिए लड़ते हुए मारे गए भारतीयों की याद में बनाया गया था जिसे पहले 'ऑल इंडिया वॉर मेमोरियल' कहा जाता था.
वेबसाइट के मुताबिक़ इस स्मारक पर 13,516 भारतीय सैनिकों के नाम लिखे हुए हैं. इनमें 1919 के अफ़गान युद्ध में मारे गए भारतीय सौनिकों के नाम भी शामिल हैं.
लेकिन अपनी पड़ताल में हमने पाया कि सांसद असदउद्दीन ओवैसी का ये दावा बिल्कुल ग़लत है.
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