जो लोग इस सभा में आए, उन्होंने ख़ुद से और नए देश से एक सवाल पूछा था, "क्या हमें यक़ीन है कि हम सत्य और अहिंसा के रास्ते ऐसा समाज बना सकेंगे जो समानता और न्याय पर आधारित हो?"
उनके इस सवाल के पीछे संगठनात्मक दुविधा भी थी- ऐसा कौन सा ज़रिया होगा जो कांग्रेस और उसकी पार्टी की सरकार को निष्पक्ष और न्याय संगत समाज की ओर बढ़ने में मदद करेगा?
विनोबा इस बात के पक्ष में नहीं थे गांधी के विचारों को संगठनात्मक और संस्थागत रूप दिया जाए. वहीं जे. सी. कुमारप्पा ने उस बैठक की तुलना यीशु और उनके अनुयायियों के बीच हुए बैठक से की थी. उन्होंने ऐसे संगठन की ज़रूरत बताई थी जो गांधी की सच्ची विरासत को आगे बढ़ाए.किन प्यारेलाल और उनके जैसे अन्य कई लोग गांधी की आख़िरी इच्छा और वसीयत से आहत थे, जिसमें कांग्रेस का विघटन करके जाति मुक्त और शोषण न करने वाले समाज के निर्माण के लिए काम करने वाले गैर-राजनीतिक संगठन बनाने की इच्छा जताई गई थी.
इस सम्मेलन में राजनीति और गवर्नेंस को लेकर गहरी दुर्भावना नज़र आई. यह नेहरू ही थे जिन्होंने कांग्रेस को ख़त्म करके लोक सेवा संघ जैसे ग़ैर-राजनीतिक संगठन के निर्माण के विचार का विरोध किया.
उन्होंने सहजता से गवर्नेंस की समस्याओं पर बात की और यह भी माना कि बापू की आधारभूत विरासत को आगे बढ़ाने के लिए एक संगठन की ज़रूरत है क्योंकि सरकार ख़ुद हर समस्या हल नहीं कर सकती.
लेकिन उस बैठक में अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कांग्रेस और गांधी ने राजनीतिक दायरा बनाने में सहायता की है. उन्होंने कहा कि न तो राजनीतिक दायरे को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है और न ही राजनीतिक जीवन को ख़त्म किया जा सकता है.
उन्होंने कांग्रेस के राजनीतिक चरित्र को बनाए रखने की वकालत की और कहा कि रचनात्मक संस्थानों के साथ इसका संबंध भी बना रहना चाहिए.
पूरे कांग्रेस नेतृत्व को इस सवाल पर विचार करना चाहिए- 'सर्वोदय' और देश में चल रहे अन्य रचनात्मक कार्यों के साथ उनका वैसा कोई जुड़ाव क्यों नहीं है, जैसा एक समय हुआ करता था?
कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने सर्वोदय (सबका उदय, सबका विकास) के साथ फिर से जुड़ने का मौक़ा खो दिया है.
भले ही कांग्रेस के नेता इस बात को न जानते हों, यह बताना ज़रूरी है कि कांग्रेस को इस बात के लिए सर्व सेवा संघ का आभारी होना चाहिए कि उसने अपने महादेव स्मारक भवन को उसकी बैठक के लिए देने के लिए सहमति दे दी.
वरना कुछ दिन पहले आश्रम के ट्रस्ट के अधिकारी ने स्पष्ट रूप से इस परिसर में कांग्रेस की बैठक की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
उनका कहना था कि प्रार्थना करने वालों का यहां स्वागत है मगर राजनीतिक बैठक करने वालों का नहीं. महादेव भवन में कांग्रेस की बैठक को लेकर गांधीवादियों का एक वर्ग अभी भी नाख़ुश है.
बापू के निर्मल और शांत सेवाग्राम आश्रम में मंगलवार को एक घंटे स्पष्ट तौर पर निर्जीव सा माहौल बना हुआ था.
सुरक्षाकर्मियों ने आम लोगों को आश्रम के परिसर से बाहर निकालना शुरू कर दिया था. दूसरे छोर से कांग्रेस पार्टी के ख़ास चुने हुए लोग आए और एक समय राष्ट्रपिता की निवास स्थल रही 'बापू कुटी' के सामने बिछाए गए गद्दों पर बैठ गए.
- सीडी कांड में छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष को जेलभजन शुरू किया. घंटे भर भजन गायकी, कुछ अन्य गतिविधियां और फ़ोटो खींचने का दौर जारी रहा.
पहली पंक्ति पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व अध्यक्ष और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बैठे थे. वे ख़ामोश बैठ उस महान आत्मा का ध्यान कर रहे थे जिन्हें उनकी पार्टी अपने लिए एक मार्गदर्शक शक्ति मानती है.
फिर वे पास में ही सेवाग्राम परिसर में मौजूद पांच गांधीवादी संस्थानों में से एक नाइ तालीम समिति द्वारा चलाए जा रहे स्कूल में गए. खाना खाने बाद उन्होंने अपने बर्तन बापू की शिक्षा के आधार पर साफ़ किए, जो कहते थे- अपने बर्तन और कपड़े ख़ुद साफ़ करने चाहिए.
ये ऐसा कार्यक्रम था जो अधिकारी वर्ग के पहले से ही तय कार्यक्रमों की तरह चला. यह ऐसा सम्मेलन नहीं था जिसमें कोई अपनी आत्मा को तलाश रहा हो.
सेवाग्राम की कुछ झोपड़ियां और इमारतें जीर्ण हो चुकी हैं. यहां रहने वाले कुछ लोग उम्रदराज़ हैं और बाहरी दुनिया के लोगों से वे कम ही बात करते हैं. मगर उनके पास कांग्रेस और इसके मौजूदा नेतृत्व को सिखाने के लिए कई सबक हैं. मगर इसके लिए पार्टी के लोगों को दो घंटों से थोड़ा ज़्यादा समय निकालना होगा.